बीएसएफ़ जवानों को नसीब नहीं 4 घंटे की भी नींद
- अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि उन्हें वरिष्ठों की गाली मिलती है.
नई दिल्ली,8 जनवरी : अर्धसैनिक बलों में तनाव के चलते जवानों के एक दूसरे को मार देने या आत्महत्या के मामलों के बीच एक सरकारी अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 70 प्रतिशत से ज्यादा जवान कम सो पाते हैं और अपने आला अधिकारियों की ओर से दुर्व्यवहार का सामना करते हैं.
यह अध्ययन सीमा सुरक्षा बल के जवानों की सेहत और स्थिति का खुलासा करता है जो पाकिस्तान और बांग्लादेश की दो सबसे महत्वपूर्ण भारतीय सीमाओं पर पहरा देते हैं. बीएसएफ़ के जवानों एवं अधिकारियों पर अपनी तरह का पहला अध्ययन ‘भावनात्मक समझ और व्यावसायिक तनाव’ शीर्षक से किया गया है. जिसमें जोखिम भरे क्षेत्रों में तैनात जवानों के उच्च तनाव स्तर के अनेक कारण बताये गये हैं.
हाल ही में गृह मंत्रालय को सौंपी गयी रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘अध्ययन दिखाता है कि बल में तनाव का स्तर कुल मिलाकर उंचा है. यह अध्ययन अपने आप में शुरूआत है. इसमें बल में तनाव के स्तर को मापने के लिए जरूरी समय और बहुत उचित संसाधन नहीं थे. तब भी यह जवानों के सामने आने वाली समस्याओं का संकेत देता है.’’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘70 प्रतिशत से ज्यादा जवानों ने बताया कि उन्हें पर्याप्त नींद और आराम नहीं मिल रहा और अन्य दर्जे के जवानों तथा कांस्टेबलों के लिहाज से यह संख्या ज्यादा है. कई ने तो बताया कि उन्हें नियमित चार घंटे से भी कम नींद मिल पाती है. इस तरह की शारीरिक थकान एवं नींद में कमी तनाव को बढाती है और प्रदर्शन पर बुरा असर डालती है.’’
136 पन्नों की रिपोर्ट में यह भी सामने आयी है कि बीएसएफ़ के औसतन एक जवान को खराब व्यवहार, गाली गलौच वाली भाषा का सामना करना पड़ता है. पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाक्षेत्रों के 1.7 लाख जवानों में से अध्ययन में कुल 161 जवान और अधिकारी शामिल हुए. अध्ययन का मकसद जवानों द्वारा एक दूसरे की हत्या या खुदकशी के मामलों को रोकने के लिए कदम उठाना है.
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और बीपीआरडी में महानिरीक्षक मनोज छाबडा ने अध्ययन कराया है. हाल ही में गृह सचिव आर के सिंह ने रिपोर्ट जारी की. जिसके अनुसार मनोवैज्ञानिक मामलों के मौजूदा मामले जमीनी हकीकत नहीं झलकाते.
नई दिल्ली,8 जनवरी : अर्धसैनिक बलों में तनाव के चलते जवानों के एक दूसरे को मार देने या आत्महत्या के मामलों के बीच एक सरकारी अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 70 प्रतिशत से ज्यादा जवान कम सो पाते हैं और अपने आला अधिकारियों की ओर से दुर्व्यवहार का सामना करते हैं.
यह अध्ययन सीमा सुरक्षा बल के जवानों की सेहत और स्थिति का खुलासा करता है जो पाकिस्तान और बांग्लादेश की दो सबसे महत्वपूर्ण भारतीय सीमाओं पर पहरा देते हैं. बीएसएफ़ के जवानों एवं अधिकारियों पर अपनी तरह का पहला अध्ययन ‘भावनात्मक समझ और व्यावसायिक तनाव’ शीर्षक से किया गया है. जिसमें जोखिम भरे क्षेत्रों में तैनात जवानों के उच्च तनाव स्तर के अनेक कारण बताये गये हैं.
हाल ही में गृह मंत्रालय को सौंपी गयी रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘अध्ययन दिखाता है कि बल में तनाव का स्तर कुल मिलाकर उंचा है. यह अध्ययन अपने आप में शुरूआत है. इसमें बल में तनाव के स्तर को मापने के लिए जरूरी समय और बहुत उचित संसाधन नहीं थे. तब भी यह जवानों के सामने आने वाली समस्याओं का संकेत देता है.’’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘70 प्रतिशत से ज्यादा जवानों ने बताया कि उन्हें पर्याप्त नींद और आराम नहीं मिल रहा और अन्य दर्जे के जवानों तथा कांस्टेबलों के लिहाज से यह संख्या ज्यादा है. कई ने तो बताया कि उन्हें नियमित चार घंटे से भी कम नींद मिल पाती है. इस तरह की शारीरिक थकान एवं नींद में कमी तनाव को बढाती है और प्रदर्शन पर बुरा असर डालती है.’’
136 पन्नों की रिपोर्ट में यह भी सामने आयी है कि बीएसएफ़ के औसतन एक जवान को खराब व्यवहार, गाली गलौच वाली भाषा का सामना करना पड़ता है. पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाक्षेत्रों के 1.7 लाख जवानों में से अध्ययन में कुल 161 जवान और अधिकारी शामिल हुए. अध्ययन का मकसद जवानों द्वारा एक दूसरे की हत्या या खुदकशी के मामलों को रोकने के लिए कदम उठाना है.
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और बीपीआरडी में महानिरीक्षक मनोज छाबडा ने अध्ययन कराया है. हाल ही में गृह सचिव आर के सिंह ने रिपोर्ट जारी की. जिसके अनुसार मनोवैज्ञानिक मामलों के मौजूदा मामले जमीनी हकीकत नहीं झलकाते.
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